Skip to main content

India from Curzon to Nehru and After (HINDI )-Journalist Durga Das

माननीय दुर्गा दास उस दौर के मशहूर और पेशे को समर्पित साख वाले पत्रकार थे जो न सिर्फ पूरे पचास बरसों तक पत्रकारिता को एक मिशन के रूप में लेते रहे १९२०, १९३० , १९४० आदिक दशकों के संघर्षों के एक सशक्त और निष्पक्ष पत्रकार के रूप में जाने गए हैं। आज़ादी के पूरे आंदोलन की आपने निष्पक्ष रिपोर्टिंग की है.बारीकबीनी की है हर घटना की।

आपकी बेहद चर्चित किताब रही है :INDIA from CURZON to NEHRU and AFTER

यह बहुचर्चित किताब आज भी ब्रिटिश सेंट्रल लाइब्रेरी ,नै दिल्ली ,में सम्भवतया उपलब्ध है। संदर्भ सामग्री के रूप में इस किताब को अनेक बार उद्धरित किया गया है आज़ादी के लम्बे आंदोलन से जुडी बारीकबीनी इस प्रामाणिक  किताब में हासिल है। इसी किताब से सिलसिलेवार जानकारी आपके लिए हम लाये हैं :

१९४० :भारत को  पंद्रह अगस्त १९४७ को मिलने वाली  आज़ादी का निर्णय ब्रितानी हुक्मरानों ने ले लिया  था इस बरस.

लार्ड माउंटबेटन को अंतिम वायसराय के रूप में भारत इसी निमित्त भेजा गया था ताकि  सत्तांतरण शांति पूर्वक हो सके।

१९४६ :इस बरस भारत में एक अंतरिम सरकार बनाने का फैसला लिया गया।

 माँउंटबेटन के मातहत कार्यरत डिप्टी को वायसराय के जाने के बाद सत्ता सौंप दी जायेगी यह सुनिश्चित कर लिया गया था।   उन दिनों भारत पंद्रह प्रांतों में विभक्त था हरेक के लिए एक प्रदेश कांग्रेस कमिटी थी जिसे PCC (Provincial Congress Committee )कहा जाता था। फैसला किया गया प्रत्येक राज्य नंबर दो की पोज़िशन के लिए एक एक नाम बंद लिफ़ाफ़े में केंद्रीय कार्यकारी समिति CWC को भेजेगा ।

जब इन लिफाफों को खोला गया तब सरदार पटेल के हक़ में बारह ,आचार्य जे. बी. कृपलानी के हक़ में दो तथा एक राज्य ने श्री  पट्टाभि सीतारमैया  के नाम का प्रस्ताव माउंबेटन के डिप्टी के लिए  बंद लिफाफों में भेजा जिन्हें कांग्रेस कार्यकारी  समिति (CWC )ने सभी सदस्यों की मौजूदगी में खोला था।

उस वक्त नेहरू  गांधी जी के एक पार्श्व में बैठे थे सरदार वल्लभ भाई पटेल दूसरे  में।  अब गांधी जी ने जैसा कि इस किताब में लिखा है कृपलानी जी की ओर जो बापू के सामने बैठे थे  अर्थपूर्ण दृष्टिपात किया। कृपलानी हाथ जोड़े खड़े हुए और कहा बापू सभी जानते हैं आप इस पोज़िशन के लिए पंडित जी के हक़ में हैं इसलिए मैं अपने दो मत पंडित जी को देते हुए इनका नाम डिप्टी के लिए प्रस्तावित करता हूँ।ऐसा कह के आचार्य कृपलानी ने अर्थगर्भित नेत्रों से पटेल की ओर देखा जो मन ही मन हो सकता है सोच रहें हों कि नेहरू जी कहेंगें नहीं  ,नहीं मैं जनभावनाओं का सम्मान करता हूँ लेकिन नेहरू खामोश रहे और चिरंजीवी आत्मीय सरदार वल्लभभाई पटेल ने प्लेटिनम के थाल में रखके अपने बारह मत भी नेहरू के पक्ष में भेंट कर दिए।

आज कई एहसान फरामोश सरदार की गुजरात में सरदार सरोवर के तट पर खड़ी  की गई प्रतिमा को भी निशाने पे ले रहें हैं।इन्हीं लोगों ने देश को कैसे गर्त में डुबोने की हर चाल इस दौर में   चली है और  चलवाई है यह किसी से छिपा नहीं है।

नेहरू का प्रधानमन्त्री बनना पक्का हो गया   लेकिन असुरक्षा की हीन  भावना उनके दिल से न गई। इसी दरमियान नवंबर १९४६ में मेरठ में कांग्रेस का अधिवेशन संपन्न  हुआ। यह वह समय था जब भारत भर में हिंसात्मक मारामारी शिखर को छू रही थी। इसी अधिवेशन में सरदार ने  पूरी शालीनता और गरिमा, देश के प्रति कर्तव्य बोध से प्रेरित होकर कहा  -अहिंसा ठीक है बहुत ठीक है लेकिन आत्मरक्षा में हथियार उठाने में कोई हर्ज़ नहीं है।

दिसंबर १९४६ में सरदार को नेहरू का एक पत्र प्राप्त हुआ ,लिखा था -"सरदार मैं तुम्हारे बारे में क्या सुन रहा हूँ तुम हिंसा की पैरवी कर रहे हो। "

सरदार ने इस के ज़वाब में जो पत्र गांधी जी को लिखा उसके चश्मदीद गवाह पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्रा (मध्य प्रदेश के पहले मुख्य- मंत्री ,सागर विश्वविद्यालय के पहले उपकुलपति )रहें हैं जो सरदार के पास बैठे थे उस वक्त। सरदार ने लिखा बापू मैं जानता हूँ वहां नौआखली में कौन आप का बगल बच्चा बना आपके कान में मेरे प्रति विष घोल   रहा है। कृपया नेहरू  ,मृदुला साराभाई का यकीन न करें। अपने विवेक का इस्तेमाल करें। मैंने जो कहा था फिर कहता हूँ :आत्मरक्षा में हथियार उठाना पड़े तो उठाओ।

अब माननीय दुर्गा दास जी ने एक ज़िम्मेवार पत्रकार हने के नाते बापू को लिखा -बापू बहुमत सरदार के पक्ष में हैं डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी भी उनके पक्ष में हैं फिर आप क्यों जवाहर लाल ,जवाहर लाल की रट लगाए हैं ?

"जवाहर बढ़िया अंग्रेज़ी बोलता है "-ज़वाब मिला

यह पत्राचार किताब में मौजूद है।

महाभारत के युद्ध के लिए जब भीष्म पितामह प्रस्थान करते हैं विदुर उन्हें कहते हैं (जिन्हें घमंडी दुर्योधन दासी पुत्र कहकर अपमानित कर चुका है )-आपने अपना सारा जीवन ,इंद्रप्रस्थ का ताज अपने पिता के व्रत को रखते हुए छोड़ दिया लेकिन आज हासिल क्या है। अठारह अक्षौणी सेना अपने वध की प्रतीक्षा कर रही है।

सरदार की गांधी जी के प्रति निष्ठा ,नीति शास्त्रीय शुचिता को आज नेहरू पंथी अपशिष्ट कांग्रेस किस तरह पलीता लगा रही है एक और विभाजन की  पटकथा पाक के इशारे पर लिख रही है यह किसी से छिपा नहीं है। एक उन्मादी मसखरा भ्रम -चारी शोर मचाये है -राफेल ....राफेल .....चोर चोर चोर ....  

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

राफेल का पूरा सच खोल डाला मेजर जनरल एस पी सिन्हा ने

Major General Mrinal Suman, AVSM, VSM, PhD, commanded an Engineer Regiment on the Siachen Glacier, the most hostile battlefield in the world. A highly qualified officer (B Tech, MA (Public Administration), MSc (Defence Studies) and a Doctorate in Public Administration) he was also the Task Force Commander at Pokhran and was responsible for designing and sinking shafts for the nuclear tests of May 1998. बे -शक भारतीय प्रतिरक्षा सेवाओं के साथ -साथ भारतीय चुनाव आयोग और माननीय सुप्रीम कोर्ट का भारत को अन्य  राष्ट्रों के बीच एक अग्रणी राष्ट्र बनाये रखने उसकी सम्प्रभुता को अक्षुण रखने में अप्रतिम योगदान रहा आया है।  लेकिन जैसे -जैसे २०१९ नज़दीक आ रहा है उन लोगों की बे -चैनी बढ़ती जा रही है जो वर्तमान राजनीतिक प्रबंध में स्थान नहीं पा सके। इनमें चंद रक्तरँगी तो हैं ही, धंधेबाज़ राजनीतिक विपक्ष के संग -संग सुपर राजनीतिक की भूमिका में माननीय सुप्रीम कोर्ट भी आता दिखलाई दिया है। ऐसा हम नहीं कहते भारत -धर्मी समाज के लोग मुंह खोलकर कहने लगें हैं।  ऐसे ही चंद लोगों से हमने इस मुद्दे पे बात की है

कल -कल वाली काम -मद मनवा पीवणहार

कल कल वाली काम मद ,मनवा पीवणहार।(गुरुनानक देव मर्दाने से मुखातिब ) पंकज फाँसे  पंक  -गुरु अरजन देव  जन्म काम से है अगर यह काम जीवन बन जाए तो चिक्कड़ चिक्क्ड़ में ही फंस के रह गया। कमल नहीं हो सका। काम राम बन जाए तो चिक्कड़  कमल हो जाए। काम सिर्फ  काम ही रह जाए तो कमल चिक्क्ड़ विच फंस के रह गया. काम से पैदा हुआ ये मनुष्य आज काम में ही फंस के रह गया है। ये युग कलाल है इसमें काम ही शराब है। काम की ही शराब बिक रही है।  मनुष्य को किसी और नशे का पता ही नहीं है। दुनिया के सारे नशे भी काम के आले दुआले मंडरा रहे हैं पर काम प्रबल नशा है। आज का सारा सामाजिक राजनीतिक यहां तक के धार्मिक परिवेश भी काम ही प्रदर्शित कर रहा है।  रेडिओ अखबार टीवी सोशल मीडिया सब काममय हो गए हैं। लेकिन कामकी चर्चा यहां वर्जित है।  जीवन तब सफल हो जाए कि जन्में भले काम से हैं लेकिन लीन  हो गए राम में।  कल -कल वाली काम -मद मनवा पीवणहार  16:50 Naganpuna | Sant Singh Ji Maskeen Jap Man Mere • 7.4K views 2 days ago New https://www.youtube.com/watch?v=h9YFsY3C620