Skip to main content

रामु गइओ रावनु गइओ जा कउ बहुपरवार। कहु नानक थिरु कछु नही सपने जिउ संसारि।

रामु गइओ रावनु गइओ जा कउ  बहुपरवार।  

कहु नानक थिरु कछु नही सपने जिउ संसारि। 

(नौवां महला श्री गुरुग्रंथ साहब सलोक ५० )

कबीर भजन -गायक श्री छन्नू लाल मिश्रा 

कबीर बारहा चेताते हैं जीवन की क्षणभंगुरता निस्सारता की ओर  ध्यान आकर्षित करते हुए कहते हैं :प्राणी तू मृत्यु को क्यों भूले बैठा है यहां जो आया है वह जाएगा कोई भी उमर पट्टा लिखा कर नहीं आया है।
यह जीवन तुझे जप तप दान के लिए मिला है। तेरे अच्छे काम ही तेरे साथ जाएंगे। यहां पुण्य के प्रतीक राम और पाप के प्रतीक रावण दोनों ही गए। तुझे अब  पुण्य और पाप दोनों के पार जाना है। भवसागर के पार जाना है। 

जीवन मृत्यु चक्र से मुक्ति पाने के लिए तेरे पास बस  एक ही उपाय है ,जिभ्या से राम राम जप। अब तो चेतो प्राणी मृत्यु आसन्न खड़ी है ,बीच धार में डूब के मर जाएगा तू। जीवन व्यर्थ गंवाया है तूने अब पछताता क्यों है। सारा जीवन चोग भोग में बिता दिया भौतिक संशाधनों को जुटाने में ही तू उलझा रहा। साथ तेरे कुछ और नहीं जाना है। 

गुरुगोविंद साहब ने कहा था -

मैं हूँ परम् पुरुख को दासा ,

पेखन आया जगत तमाशा।

ये दुनिया एक खेल तमाशा है। यहां तू अपना खेल बा -खूबी खेल मोह माया में मत पड़। गृहस्थ में रह वैराग्य भाव से। जब आया था तो तेरी मुठ्ठी बंद थी उसमें तेरा प्रारब्ध था। पूर्व जन्मों के कर्मफल का कुछ अंश था। अब यहां से क्या खाली हाथ ही जाने का इरादा है। कुछ राम नाम की कमाई कर ले वही तेरे साथ जायेगी। महल दुमहले धेला दूकड़ा कुछ तेरे साथ नहीं जाएगा। सब यहीं  छूट जाएगा।सिकंदर भी यहां तो खाली हाथ ही गया था।  

यहां कर्मों से कोई भाग कर नहीं जा सका है। 

कर्म प्रधान विश्व करि रखा ,
जो जस करहि सो फल  चाखा . 

                  भजन -भगत कबीर 
आया  है तो जाएगा ,तू सोचो अभिमानी मन ,
चेतो अब चेतो, दिवस तेरो  नियराना है। 

कर से करू दान मान ,मुख से जप राम -राम ,

 वाही दिन आवे काम , जाहि दिन जाना है 

नदिया है अगम तेरी ,सूझत नहीं आर -पार ,

बूड़त हो बीच धार ,अब क्या पछताना है। 

हे रे अभिमानी ,झूठी माया संसारी  गति ,

 मुट्ठी  बान्ध आया है , तो खाली हाथ जाना है। 

स्थायी :

दुनिया  दर्शन  का है मेला ,दुनिया दर्शन  का है मेला। 

अपनी करनी पार उतरनी ,अपनी करनी पार उतरनी ,

गुरु होय चाहे चेला ,गुरु होय चाहे चेला ,

दुनिया दर्शन का है मेला ....... 

अंतरा :१ 

कंकर चुनि -चुनि  महल बनाया ,

लोग कहें घर मेरा ,

कंकर चुनि -चुनि महल बनाया , 

न घर मेरा न घर तेरा ,चिड़िया रेन बसेरा ,

दुनिया दर्शन का है मेला ....... 

अंतरा (२ )

महल बनाया किला चिनाया ,खेलन को सब खेला ,

चलने की जब बेला आई ,सब तजि चला अकेला ,

दुनिया ,सब तजि चला अकेला ,दुनिया दर्शन का है मेला। 

महल बनाया(२ )  किला  चुनाया  खेलन को सब खेला ,

महल बनाया किला चुनाया 

खेलन को सब खेला ,चलने की जब बेला आई सब तजि चला अकेला ,

दुनिया दर्शन का है मेला। ... 

अंतरा (३ )

न कुछ लेकर आया बन्दे(२ ) ,न कुछ है यहां तेरा ,

कहत कबीर सुनो भइ साधु संग न जाए धेला। 

दुनिया संग न जाए  धेला ,दुनिया दर्शन का है मेला। 

https://www.youtube.com/watch?v=jac8tC4K-mE    

दुइ दुइ लोचन पेखा ,

हरि  बिनु  औरू  न पेखा ( देखा)। 

जप तप साधन न बने ,

केवल नाम अधार। 

कली में जीवन अल्प  है ,बेगि करो संभार  ,

जप तप साधन न बने ,केवल नाम धार। (कबीर )

सकल ग्रन्थ का सार है ,और सब बातों की बात। 

कबीर सिमरन राम का , कीजे दिन और रात। 

 (श्वांस -श्वांस )में नाम ले वृथा श्वांस  न खोया ,

न जाने इस सांस का आवन होय न होय। 

https://www.youtube.com/watch?v=bBWuBKOvx6A










Comments

Popular posts from this blog

राफेल का पूरा सच खोल डाला मेजर जनरल एस पी सिन्हा ने

Major General Mrinal Suman, AVSM, VSM, PhD, commanded an Engineer Regiment on the Siachen Glacier, the most hostile battlefield in the world. A highly qualified officer (B Tech, MA (Public Administration), MSc (Defence Studies) and a Doctorate in Public Administration) he was also the Task Force Commander at Pokhran and was responsible for designing and sinking shafts for the nuclear tests of May 1998. बे -शक भारतीय प्रतिरक्षा सेवाओं के साथ -साथ भारतीय चुनाव आयोग और माननीय सुप्रीम कोर्ट का भारत को अन्य  राष्ट्रों के बीच एक अग्रणी राष्ट्र बनाये रखने उसकी सम्प्रभुता को अक्षुण रखने में अप्रतिम योगदान रहा आया है।  लेकिन जैसे -जैसे २०१९ नज़दीक आ रहा है उन लोगों की बे -चैनी बढ़ती जा रही है जो वर्तमान राजनीतिक प्रबंध में स्थान नहीं पा सके। इनमें चंद रक्तरँगी तो हैं ही, धंधेबाज़ राजनीतिक विपक्ष के संग -संग सुपर राजनीतिक की भूमिका में माननीय सुप्रीम कोर्ट भी आता दिखलाई दिया है। ऐसा हम नहीं कहते भारत -धर्मी समाज के लोग मुंह खोलकर कहने लगें हैं।  ऐसे ही चंद लोगों से हमने इस मुद्दे पे बात की है

कल -कल वाली काम -मद मनवा पीवणहार

कल कल वाली काम मद ,मनवा पीवणहार।(गुरुनानक देव मर्दाने से मुखातिब ) पंकज फाँसे  पंक  -गुरु अरजन देव  जन्म काम से है अगर यह काम जीवन बन जाए तो चिक्कड़ चिक्क्ड़ में ही फंस के रह गया। कमल नहीं हो सका। काम राम बन जाए तो चिक्कड़  कमल हो जाए। काम सिर्फ  काम ही रह जाए तो कमल चिक्क्ड़ विच फंस के रह गया. काम से पैदा हुआ ये मनुष्य आज काम में ही फंस के रह गया है। ये युग कलाल है इसमें काम ही शराब है। काम की ही शराब बिक रही है।  मनुष्य को किसी और नशे का पता ही नहीं है। दुनिया के सारे नशे भी काम के आले दुआले मंडरा रहे हैं पर काम प्रबल नशा है। आज का सारा सामाजिक राजनीतिक यहां तक के धार्मिक परिवेश भी काम ही प्रदर्शित कर रहा है।  रेडिओ अखबार टीवी सोशल मीडिया सब काममय हो गए हैं। लेकिन कामकी चर्चा यहां वर्जित है।  जीवन तब सफल हो जाए कि जन्में भले काम से हैं लेकिन लीन  हो गए राम में।  कल -कल वाली काम -मद मनवा पीवणहार  16:50 Naganpuna | Sant Singh Ji Maskeen Jap Man Mere • 7.4K views 2 days ago New https://www.youtube.com/watch?v=h9YFsY3C620

India from Curzon to Nehru and After (HINDI )-Journalist Durga Das

माननीय दुर्गा दास उस दौर के मशहूर और पेशे को समर्पित साख वाले पत्रकार थे जो न सिर्फ पूरे पचास बरसों तक पत्रकारिता को एक मिशन के रूप में लेते रहे १९२०, १९३० , १९४० आदिक दशकों के संघर्षों के एक सशक्त और निष्पक्ष पत्रकार के रूप में जाने गए हैं। आज़ादी के पूरे आंदोलन की आपने निष्पक्ष रिपोर्टिंग की है.बारीकबीनी की है हर घटना की। आपकी बेहद चर्चित किताब रही है :INDIA from CURZON to NEHRU and AFTER यह बहुचर्चित किताब आज भी ब्रिटिश सेंट्रल लाइब्रेरी ,नै दिल्ली ,में सम्भवतया उपलब्ध है। संदर्भ सामग्री के रूप में इस किताब को अनेक बार उद्धरित किया गया है आज़ादी के लम्बे आंदोलन से जुडी बारीकबीनी इस प्रामाणिक  किताब में हासिल है। इसी किताब से सिलसिलेवार जानकारी आपके लिए हम लाये हैं : १९४० :भारत को  पंद्रह अगस्त १९४७ को मिलने वाली  आज़ादी का निर्णय ब्रितानी हुक्मरानों ने ले लिया  था इस बरस. लार्ड माउंटबेटन को अंतिम वायसराय के रूप में भारत इसी निमित्त भेजा गया था ताकि  सत्तांतरण शांति पूर्वक हो सके। १९४६ :इस बरस भारत में एक अंतरिम सरकार बनाने का फैसला लिया गया।  माँउंटबेटन के मातहत कार्यरत डि