लेखक: ज़िया ज़मीर इक्कीसवीं सदी की तीसरी दहाई शुरू हुआ चाहती है। मौसमे-सर्द रवाना होते-होते वापसी कर रहा है और मौसमे-गर्म की आमद-आमद है। मगर दो मौसमों के मिलन की इस साअत में भी दिल बुझे हुए हैं। दो-चार लोगों के दिल नहीं, दो-चार शहरों या मुल्कों के दिल नहीं बल्कि सारी दुनिया के दिल बुझे हुए हैं। कैसी अजीब और डरावनी हक़ीक़त है कि इस ज़मीं की आधी से ज़ायद आबादी अपने-अपने घरों में कै़द हैं। यह सज़ा है या आज़माइश, अभी ज़ाहिर नहीं हुआ है। सज़ा है तो ना-कर्दा गुनाहों की है या कर्दा गुनाहों की, इस राज़ से भी पर्दा उठना अभी बाक़ी है। फ़िलहाल तो मुसलसल अंदेशा यह है कि कुछ दिन या कुछ महीनों के बाद भी क्या हम इस कै़द से आज़ाद हो पाएंगे? ऐसा क्या कर दिया हमने जो एक दूसरे के लिए मौत का सामान बन गये हैं। पीरज़ादा क़ासिम ने क्या इसी दिन के लिए कहा था अपने ख़िलाफ़ फैसला ख़ुद ही लिखा है आपने हाथ भी मल रहे हैं आप, आप बहुत अजीब हैं क्या हम ख़ुद ही अपनी तबाही का सबब बनेंगे या बन चुके हैं। क्या जॉन एलिया यह पहले से जानते थे अब नहीं बात कोई ख़तरे की अब सभी को सभी से ख़तरा है आदमी अपने लिए, अप
कल कल वाली काम मद ,मनवा पीवणहार।(गुरुनानक देव मर्दाने से मुखातिब ) पंकज फाँसे पंक -गुरु अरजन देव जन्म काम से है अगर यह काम जीवन बन जाए तो चिक्कड़ चिक्क्ड़ में ही फंस के रह गया। कमल नहीं हो सका। काम राम बन जाए तो चिक्कड़ कमल हो जाए। काम सिर्फ काम ही रह जाए तो कमल चिक्क्ड़ विच फंस के रह गया. काम से पैदा हुआ ये मनुष्य आज काम में ही फंस के रह गया है। ये युग कलाल है इसमें काम ही शराब है। काम की ही शराब बिक रही है। मनुष्य को किसी और नशे का पता ही नहीं है। दुनिया के सारे नशे भी काम के आले दुआले मंडरा रहे हैं पर काम प्रबल नशा है। आज का सारा सामाजिक राजनीतिक यहां तक के धार्मिक परिवेश भी काम ही प्रदर्शित कर रहा है। रेडिओ अखबार टीवी सोशल मीडिया सब काममय हो गए हैं। लेकिन कामकी चर्चा यहां वर्जित है। जीवन तब सफल हो जाए कि जन्में भले काम से हैं लेकिन लीन हो गए राम में। कल -कल वाली काम -मद मनवा पीवणहार 16:50 Naganpuna | Sant Singh Ji Maskeen Jap Man Mere • 7.4K views 2 days ago New https://www.youtube.com/watch?v=h9YFsY3C620