Skip to main content

मूस बिलाई एक संग, कहो कैसे रह जाय , अचरज एक देखो हो संतों, हस्ती सिंह ही खाय। मूस (मूषक ); बिलाई (बिल्ली );हस्ती (हाथी )

मूस बिलाई एक संग, कहो कैसे रह जाय ,   अचरज  एक देखो हो   संतों, हस्ती  सिंह ही खाय।     मूस (मूषक ); बिलाई (बिल्ली );हस्ती (हाथी )

कबीर इस बारहवीं रमैनी में माया -मोह, मन का राग रंग सबको  त्यागने की बात प्रतीकात्मक  ढ़ंग से कहते हैं। देखिये कुछ बानगियाँ :

माटी के कोट पसान को  ताला,

सोइ एक बन सोइ रखवाला। 

शब्दार्थ :पसान (पाषाण ),कोट (किला )

कबीर कहते हैं यह शरीर तो वैसे ही जड़ है जड़ तत्वों का जमा जोड़ है हवा पानी  मिट्टी, आकाश और आग का ही तो  इकठ्ठ है।इस पर जड़ पाषाण का ताला मत जड़। अपनी विवेक बुद्धि को पहचान अन्वेषण कर हित , अहित का। यह जड़ बुद्धि ही माया है। इस अविद्या ,माया के राग रंग रूप से तू मुक्त हो।  

सो बन देखत जीव  डिराना,

ब्राह्मण वैष्णव एक ही जाना।

बन (माया का जंगल ),ब्रह्मण - वैष्णव(कर्म कांड के धंधे बाज़ )

यह माया का जंगल माया का कुनबा तूने ही रचा है। यह तो जाना ही जाना है यह शरीर भी जाना ही जाना है बुढ़ापे से रोग से छीजना ही छीजना है। इससे क्यों भयभीत होता है यह तेरा निज स्वरूप नहीं है तेरा निज स्वरूप न कहीं  जाता है न कहीं से आता है तेरे ही साथ रहता है। लेकिन उस पर माया रुपी जंगल हावी रहता है। 

ज्यों किसान किसानी करिहि ,

उपजे खेत बीज नहीं परिहि।  

ये जो संतों की  भीड़ अनेक मत -मतांतरों के धर्म गुरुओं की खेती हो रही है इसमें तत्व की कोई बात नहीं बतलाता यह सब निरर्थक है उस खेती का क्या फायदा जिसमें फसल तो उगे लेकिन खेत में डंठल - डंठल  ही उगें। बीज न पनपे दाना न पनपे पौध में।ज्ञात हो इस दौर में धर्म का जितना प्रचार प्रसार इन कथित धर्म गुरुओं ने किया है उतना पिछले दस हज़ार सालों में नहीं हुआ था। फिर भी हासिल क्या है वही ढाक  के तीन पात। तत्व की बात कोई बतलाता ही नहीं है सारा फल खुद ही भोगना चाहता है।  

छार देव नर  झेलिक झेला ,

बूड़े दोउ  गुरु और चेला।

झेलिक झेला (धक्का पेल असत्य की तत्व  रहित ज्ञान की )

और कबीर जल्दी से ये भी कह देते हैं ये सारे ज्ञान की धका - पेल करने वाले ,पाखंडी गुरु खुद तो डुबेंगे ही अपने शिष्यों को भी संग ले डूबेंगे। 

तीसर  बूड़े  पारध भाई ,

जिन बन ढाहे  दावा(दवा ) लगाई।

बूड़े (डूब गए ); पारध (बहेलिया ,शिकारी ,पांखण्डी गुरु घंटाल );दवा (दावानल )

वह भी शिकारी की तरह नष्ट हो जाएंगे जो शिकार करने के लिए पहले तो सारे जंगल को आग के हवाले कर देते हैं फिर किसी एक रणनीतिक जगह पर खड़े जंगल के निरीह पशुओं का  शिकार करते हैं। ये सारे पाखंडी साधना के फल का स्वमेव  ही उपभोग करने वाले भी उसी दावानल का शिकार हो जाएंगे।  

भूख -भूख कूकर मर गयो , 

काज न एक  सियार  से  भयो। 

कूकर (वाचिक ग्यानी ,कपिल सिब्बल ,मनीष तिवारी ,दिग्विजय सिंह जैसे कथित ग्यानी )

कबीर आज के वाचिक ज्ञानियों साधू संतों ,'रामपालों 'की तुलना कूकरों से करते हैं कहते हैं ये तमाम लोग खुद कुत्ताए हुए हैं कुत्तों की तरह भोंकते रहते हैं बात बे बात वितंडा रचते हैं और उसी में खुद भी फंस जाते है। सारी  बातें इनकी निरर्थक हैं। ये वैसे ही  भौंकते  रहते हैं जैसे इन दिनों कांग्रेस के प्रवक्ता जो सुप्रीम कोर्ट के उकील जैसा बतलाये जाते हैं और एक परिवार की जूठन की भी जूठन होकर रह गए हैं। 

मूस बिलाई एक संग, कहो कैसे रह जाय ,

अचरज  एक देखो हो   संतों, हस्ती  सिंह ही खाय। 

मूस (मूषक ); बिलाई (बिल्ली );हस्ती (हाथी )

कबीर यहां कहते हैं माया और ज्ञान ,माया और साधना ,माया और वैराग्य साथ साथ कैसे रह सकते हैं अर्थात नहीं रह सकते। जैसे चूहा और बिल्ली साथ साथ नहीं रह सकते। माया रुपी बिल्ली चूहा बने जीव का भक्षण कर रही है। हे संतों मैंने एक बड़ा कौतुक पैदा करने वाली बात देखी है जिस शेर के दहाड़ने से हाथी डर  के भाग खड़ा होता है वह हाथी ही शेर का शिकार करके उसे खा रहा है। 

यहां आध्यात्मिक रूपक का इस्तेमाल कबीर करते हैं। 'माया -हाथी' जीव का 'मन' है जो स्वयं जीव को भटका कर कल्पना भ्रान्ति पैदा करके उसको भटका रहा है। जबकि 'मन' का स्वामी स्वयं 'जीव' है। वह अपने निज स्वरूप को निजत्व आँज कर मन को अपना गुलाम बना सकता है। 

कबीर ने साखी (दोहे ),शबद (गुरुग्रंथ साहब में इन्हें सलोक कहा गया है )और रमैनी लिखीं हैं। 

रमैनी कथात्मक है जिनमें कथा भी है सामाजिक विद्रूप भी है और आध्यात्मिक रूपक के मार्फ़त व्यंजना  के माध्यम से कबीर ने अपनी बात कही है। कबीर के समय भी अनेक मत मतान्तरों का बोलबाला था कबीर स्वयं साधू संतों से घिरे रहते थे इसलिए अपनी बात व्यंजना में  कहते थे-

कांकर पाथर जोरि कर मस्जिद लइ  बनाय ....;

 पाहुन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहाड़ .....,

कबीरा मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर ,

पाछे पाछे हरि फिरै कहत कबीर कबीर। 

कबीर हज काबे हउ जाइ था ,आगै मिलिआ खुदाइ ,

सांई मुझ सिउ लरि परिआ, तुझै किनहिं किंहि फुरमाई गाइ। 

कबीर कर्म -कांडी ब्राह्मणों और वैष्णवों को समान रूप से लताड़ते हैं। 

  कबीर साहब कहते हैं माया से बचो।अविद्या से माया से मन के रागात्मक संबंधों से बचो अपने स्वरूप को पहचानों। कल्पना भ्रान्ति पैदा करके भरमाने वाले स्वयं घोषित भगवानों से बचो।

सन्दर्भ -सामिग्री :
(१ )https://www.youtube.com/watch?v=EhoBDC5eUjQ

(२ )https://www.youtube.com/watch?v=CC2ZW-Ppd5

(३ )डॉ.   वागेश मेहता नन्द लाल के साथ विमर्श।  

Comments

Popular posts from this blog

कोरोना के बाद कि दुनिया: शायर कि नज़र से

लेखक: ज़िया ज़मीर इक्कीसवीं सदी की तीसरी दहाई शुरू हुआ चाहती है। मौसमे-सर्द रवाना होते-होते वापसी कर रहा है और मौसमे-गर्म की आमद-आमद है। मगर दो मौसमों के मिलन की इस साअत में भी दिल बुझे हुए हैं। दो-चार लोगों के दिल नहीं, दो-चार शहरों या मुल्कों के दिल नहीं बल्कि सारी दुनिया के दिल बुझे हुए हैं। कैसी अजीब और डरावनी हक़ीक़त है कि इस ज़मीं की आधी से ज़ायद आबादी अपने-अपने घरों में कै़द हैं। यह सज़ा है या आज़माइश, अभी ज़ाहिर नहीं हुआ है। सज़ा है तो ना-कर्दा गुनाहों की है या कर्दा गुनाहों की, इस राज़ से भी पर्दा उठना अभी बाक़ी है। फ़िलहाल तो मुसलसल अंदेशा यह है कि कुछ दिन या कुछ महीनों के बाद भी क्या हम इस कै़द से आज़ाद हो पाएंगे? ऐसा क्या कर दिया हमने जो एक दूसरे के लिए मौत का सामान बन गये हैं। पीरज़ादा क़ासिम ने क्या इसी दिन के लिए कहा था अपने ख़िलाफ़ फैसला ख़ुद ही लिखा है आपने हाथ भी मल रहे हैं आप, आप बहुत अजीब हैं क्या हम ख़ुद ही अपनी तबाही का सबब बनेंगे या बन चुके हैं। क्या जॉन एलिया यह पहले से जानते थे अब नहीं बात कोई ख़तरे की अब सभी को सभी से ख़तरा है आदमी अपने लिए, अप...

राफेल का पूरा सच खोल डाला मेजर जनरल एस पी सिन्हा ने

Major General Mrinal Suman, AVSM, VSM, PhD, commanded an Engineer Regiment on the Siachen Glacier, the most hostile battlefield in the world. A highly qualified officer (B Tech, MA (Public Administration), MSc (Defence Studies) and a Doctorate in Public Administration) he was also the Task Force Commander at Pokhran and was responsible for designing and sinking shafts for the nuclear tests of May 1998. बे -शक भारतीय प्रतिरक्षा सेवाओं के साथ -साथ भारतीय चुनाव आयोग और माननीय सुप्रीम कोर्ट का भारत को अन्य  राष्ट्रों के बीच एक अग्रणी राष्ट्र बनाये रखने उसकी सम्प्रभुता को अक्षुण रखने में अप्रतिम योगदान रहा आया है।  लेकिन जैसे -जैसे २०१९ नज़दीक आ रहा है उन लोगों की बे -चैनी बढ़ती जा रही है जो वर्तमान राजनीतिक प्रबंध में स्थान नहीं पा सके। इनमें चंद रक्तरँगी तो हैं ही, धंधेबाज़ राजनीतिक विपक्ष के संग -संग सुपर राजनीतिक की भूमिका में माननीय सुप्रीम कोर्ट भी आता दिखलाई दिया है। ऐसा हम नहीं कहते भारत -धर्मी समाज के लोग मुंह खोलकर कहने लगें हैं।  ऐसे ही चंद लोगों से हमने...

कल -कल वाली काम -मद मनवा पीवणहार

कल कल वाली काम मद ,मनवा पीवणहार।(गुरुनानक देव मर्दाने से मुखातिब ) पंकज फाँसे  पंक  -गुरु अरजन देव  जन्म काम से है अगर यह काम जीवन बन जाए तो चिक्कड़ चिक्क्ड़ में ही फंस के रह गया। कमल नहीं हो सका। काम राम बन जाए तो चिक्कड़  कमल हो जाए। काम सिर्फ  काम ही रह जाए तो कमल चिक्क्ड़ विच फंस के रह गया. काम से पैदा हुआ ये मनुष्य आज काम में ही फंस के रह गया है। ये युग कलाल है इसमें काम ही शराब है। काम की ही शराब बिक रही है।  मनुष्य को किसी और नशे का पता ही नहीं है। दुनिया के सारे नशे भी काम के आले दुआले मंडरा रहे हैं पर काम प्रबल नशा है। आज का सारा सामाजिक राजनीतिक यहां तक के धार्मिक परिवेश भी काम ही प्रदर्शित कर रहा है।  रेडिओ अखबार टीवी सोशल मीडिया सब काममय हो गए हैं। लेकिन कामकी चर्चा यहां वर्जित है।  जीवन तब सफल हो जाए कि जन्में भले काम से हैं लेकिन लीन  हो गए राम में।  कल -कल वाली काम -मद मनवा पीवणहार  16:50 Naganpuna | Sant Singh Ji Maskeen Jap Man Mere • 7.4K views 2 days ago ...